(Human Development )
मानव विकास से आशय – मनवीय जीवन को बेहतर और सार्थक बनाने की प्रक्रिया मानवीय विकास कहते है ।
खुद से प्रश्न करने हेतु –
मै और आप कौन है ? किस प्रकार से आरंभिक शिक्षा से उच्च शिक्षा को अग्रसर हुए ? प्रारम्भिक जीवन से आज तक के हमारे जीवन मे क्या वृध्दि और विकास हुआ साथ ही हमे किस प्रकार की सुविधाये प्राप्त हुई ?
यदि कोई व्यक्ति निम्न या मध्यम परिवार से आता है? तो क्या हम यह समझने की कोशिश कर सकते है की किन कारणों से उसके परिवार का विकास नही हो पाया । तथा वे कौन से तत्व है? जो मानव को सम्पन्न ,सार्थक जीवन को दिल सकता है ।
मानव को एक सार्थक जीवन जिने तथा उसके जीवन मे सार्थकता लाने के लिए कौन से तत्व होते है ? इस प्रकार के व्यक्ति से संबंधित बिन्दुओ को समझने या जानने हेतु मानव विकास का अध्याय शामिल किया गया है।
इस अवधारणा को प्रस्तुत करने का श्रेय डॉ महबूब उल-हक तथा उनके घनिष्ट मित्र अमर्त्य सेन को जाता है इन दोनों ने मिलकर “मानव विका” के क्षेत्र मे महत्वपूर्ण कार्य किया है।
मानवीय प्रगति क्या है ?
मानवीय प्रगति (Human Development) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे व्यक्ति और सम्पूर्ण समाज की क्षमताओं को बढ़ाने की कोशिश किया जाता है। ताकि वो एक स्वतंत्र रूप से सार्थक जीवन जी सके।
मानव विकास केवल आर्थिक प्रगति ही नही बल्कि इसमे अन्य बुनियादी तत्व जैसे : शिक्षा, स्वास्थ्य, समानता, और सामाजिक स्वतंत्रता जैसे पहलुओं का भी समावेश होता है।
सार्थक जीवन क्या है ? व्यक्ति का सार्थक जीवन तब माना जाएगा जब उसकी मूलभूत बुनियादी जरूरते (जैसे : स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन ,आश्रय) पूरा हो सके तो उसे सार्थक जीवन कहेंगे ।
वृध्दि और विकास दोनों ही शब्द एक समान प्रतीत होते है जो परिवर्तन की ओर इशारा करते है।
वृध्दि और विकास मे अंतर
डॉ. महबूब उल–हक इन्होंने 80 के दशक के अंत मे और 90 के दशक के प्रारंभ मे मानव विकास की अवधारण को विकल्पों की वृध्दि के साथ जोड़ दिया । विकास का केंद्र बिन्दु मानव है और विकल्प परिवर्तनीय है अतः विकास का एकमात्र उदेश्य मानव के लिए सार्थक जीवन जीने की दशा उत्पन्न करना है । अर्थात लोग स्वस्थ विवेकवान , बुध्दिमान हो ताकि व्यक्ति अपने उद्देश को स्वतंत्रतापूर्वक पूरा कर सके ।
डॉ. महबूब उल–हक का मत था की मानव विकास का संबंध लोगों के विकल्पों मे वृध्दि करना है जिससे वे आत्मसम्मान के साथ दीर्घ और स्वस्थ जीवन जी सके। 1990 ईस्वी मे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने मानव विकास प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के लिए इनकी ही मानव विकास संकल्पना का प्रयोग किया ।
व्यक्तिगत विकास के चार स्तंभ
मानव विकास के स्तंभ वे मूलभूत आयाम है जो एक व्यक्ति और समाज के विकास या प्रगति के लिए आवश्यक माने जाते है इसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा प्रस्तावित किया गया है।
मानव विकास का आधार चार प्रमुख स्तंभों पर टीका है –
- समता या समानता (Equity)
- समता बराबरी के भाव को व्यक्त करने वाला शब्द है अर्थात हर व्यक्ति को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और संसाधनों तक समान पहुंच होनी चाहिए।
- यह सुनिश्चित करता है की समाज के प्रत्येक वर्गों को समान अवसर प्राप्त हो तथा उनके साथ किसी भी प्रकार की समस्या जैसे लिंग , प्रजाति , आय और जातिवाद की नही होनी चाहिए।
- सतत पोषणीयता या स्थिरता (Sustainability)
- प्रत्येक व्यक्ति को जीवन निर्वाह के लिए सतत पोषण की आवश्यकता होती है
- सतत पोषणीयता से आशय की मानव विकास को ऐसे तरीके से प्रोत्साहित किया जाए जो भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी फायदेमंद हो। अर्थात उपयुक्त संसाधनों इस प्रकार इस्तेमाल करना की आने वाली पीढ़ियों के विकास के लिए मार्ग मे बढ़ाएं उत्पन्न न हो सके।
- इस स्तंभ मे विशेष रूप से इसमें पर्यावरण संरक्षण, संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग और दीर्घकालिक सोच शामिल है।
- उत्पादकता या सक्रियता ((Productivity) इस स्तंभ का महत्वपूर्ण हिस्सा शिक्षा और कौशल विकास हैं।
- सशक्तीकरण (Empowerment):
- सशक्तीकरण का सामान्य अर्थ है – शक्तिवान बनना ।
- प्रत्येक व्यक्ति को खुद से निर्णय लेने और अपनी जिंदगी के बारे में नियंत्रण रखने का अधिकार हो। व्यक्ति को जितनी अधिक स्वतंत्रता मिलेगी वह उतना ही क्षमतावान बनकर सशक्तिकरण का लक्ष्य पा सकेगा
यह स्तंभ विशेष रूप से महिलाओं, बच्चों और वंचित वर्गों के अधिकारों को बढ़ावा देने पर जोर देता है।
उदाहरण के माध्यम से समझने का प्रयास कीजिए –
समानता : गाँव हो या शहर हो सभी लोगों का अधिकार है स्कूल जाने का
स्थिरता : जल इसका इस प्रकार प्रयोग करे की आने वाला पीढ़ी को संकट न हो
उत्पादकता : गाँव शहर में एक प्रशिक्षण केंद्र है, जहाँ लोग खेती, सिलाई, या कंप्यूटर चलाना सीख सकते हैं, ताकि उनकी आय बढ़ सके।
सशक्तीकरण : ग्राम पंचायत की बैठक में हर व्यक्ति को अपनी राय रखने का मौका मिलता है।
मानव विकास के उपागम (Approaches)
ये वे तरीके है जिनसे नीति निर्माता यह तय करते है लोगों और समुदायों के विकास के लिए क्या प्राथमिकता होनी चाहिए
मानव विकास की समस्याओ को देखने , समझने और मापने के लिए विशेष दृष्टिकोण को अपनाए जाते है ये उपागम विकास की बहुआयामी प्रकृति को दर्शाते हैं-
- आय उपागम (Income Approach):
- इस उपागम मे मानव को आय के संदर्भ मे मापा जाता है यह उपागम स्पष्ट करता है की आय का स्तर जितना ऊंचा होता है। मानव विकास का स्तर भी उतना ऊँचा हो जाता है।
- तथा इस उपागम के अनुसार उच्च आय वाले लोगों के पास बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन स्तर तक पहुंच होती है।
- उदाहरण : गरीब व्यक्ति को गरीबी की रेखा से बाहर निकालने के लिए रोजगार प्रदान करना ।
2 कल्याण उपागम
- इस उपागम का लक्ष्य मानव को सभी विकासात्मक गतिविधियों के रूप मे देखना है तथा इस दृष्टिकोण में मानव विकास को अधिकारों के संदर्भ में देखा जाता है।
- यह उपागम के अनुसार सरकार का दायित्व होना चाहिए की वह अधिकतम व्यय करके समूहों के लिए शिक्षा , स्वास्थ्य सामाजिक सुरक्षा और सुख साधनों की उच्च सतरिय व्यवस्था करनी चाहिए।
- उदाहरण : सरकारी योजनाओं के तहत मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, और राशन प्रदान करना।
3 आधार भूत आवश्यकता उपागम
- इस उपागम में बुनियादी ज़रूरतों जैसे भोजन, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास को पूरा करने पर जोर दिया जाता है। इसके बिना उसका जीवन चलना दूभर होता है इस उपागम को मूलरूप से अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने प्रस्तावित किया है उसने मानव के लिए निम्नलिखित 6 मूलभूत आवशकतों की अनिवार्यता पर बल दिया है –
- भोजन, आवास, जलपूर्ति ,स्वच्छता ,शिक्षा, स्वास्थ्य।
- ग्रामीण क्षेत्रों मे स्कूल अस्पताल आदि स्थापित करना ।
4. क्षमता उपागम
- इस उपागम को प्रस्तुत करने का श्रेय अमर्त्यसेन को है
- इसके अनुसार, विकास का मापन इस बात से किया जाता है कि लोग क्या कर सकते हैं और क्या बन सकते हैं, यानी उनकी क्षमताओं का विस्तार।
- मानव की संसाधनों तक जितनी पहुँच होगी तथा उसमे उनके उपयोग की जितनी क्षमता होगी मानव विकास उतना प्रशस्त होगा ।
उदाहरण : गरीब को उच्च शिक्षा देना जिससे वो अपने जीवन उच्चतम की सके ।
मानवीय उत्थान का मापन
मानव विकास का मापन सूचकांक(स्थिति के स्तर को मापने) के द्वारा किया जाता है मानव विकास सूचकांक एक ऐसा मापदंड है जिसका इस्तेमाल किसी देश मानव विकास के स्तर को मापने के लिए किया जाता है। मानव विकास सूचकांक निर्मित करने का श्रेय डॉ महबूब उल -हक को जाता है।
मानव विकास सूचकांक यह बताया है की किसी देश मे लोग कितने स्वास्थ्य, कितने पढे लिखे वा कितने समृद्ध है?
मानव विकास सूचकांक तीन मुख्य घटकों पर आधारित है-
- स्वास्थ्य
- शिक्षा और
- संसाधन
मानव विकास सूचकांक की गणना
मानव विकास सूचकांक की माप 0 से 1 के बीच के स्कोर को मापा जाता है
मानव विकास का स्तर | मानव विकास सूचकांक का स्कोर | देशों की संख्या |
अति उच्च
उच्च माध्यम निम्न |
0.800 से ऊपर
0.701 से 0.799 के बीच 0.550 से 0.700 के बीच 0.549 से नीचे |
66
53 37 33 |
सर्वोच्च उच्च मूल्य सूचकांक वाले देश –
स्वीटरजलैन्ड, नार्वे, आइसलैंड ,हांगकांग ,आस्ट्रेलिया, डेनमार्क, स्वीडन, आयरलैंड ,जर्मनी, नीदरलैंड ।
नार्वे मे औसत जीवन प्रत्याशा लगभग 83 साल है क्योंकि यहाँ स्वास्थ्य, शिक्षा, और आय के मानक बहुत अच्छे हैं।
- विश्व मे सामाजिक विकास के निम्न स्तरीय देशों की कुल सांख्य 33 है मानव विकास प्रतिवेदन के अनुसार 2006 मे भारत मानवीय उत्थान की दृष्टि से विश्व मे 126 वे स्थान पर था जो 2022 मे 132 वे स्थान पर पहुच गया।
- भारत मानव विकास की श्रेणी मे 131 वे देशों से पिछई होने का कारण लंबी दासता , जातिवाद, बेरोजगारी, निर्धनता ।
मानव विकास सूचकांक को समझने का आसान तरीका –
- लोग कितने लंबे और स्वस्थ जीवन जीते हैं?
- लोग कितने शिक्षित या पढे लिखे हैं और उन्हें शिक्षा के कितने अवसर मिले हैं?
- लोगों की औसत आय और जीवन स्तर कैसा है?
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