आचार्य प्रशांत
आचार्य प्रशांत जी, जो आज के आधुनिक दार्शनिक के रूप में प्रख्यात हैं जिन्होंने लाखो के जीवन को बदल रखा हैं
आचार्य प्रशांत जी का जीवनी —
आचार्य प्रशांत जी जिनका मूल नाम प्रशांत त्रिपाठी है इनका जन्म 1978 को महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में हुआ, वे घर के बड़े सदस्य या अपने भाई बहनों में सबसे बड़े है, उनके पिता एक प्रतिभा प्रशासनिक अधिकारी थे और माता एक गृहणी थी ।
बचपन में इनके माता – पिता और शिक्षको ने उन्हें एक ऐसा बालक पाया जो कभी शरारत तो कभी आध्यात्म के एक गहन चिंतन में डूब जाता, एक प्रतिभा शाली छात्र होने के कारण वे लगातार अपनी कक्षा में शीर्ष स्थान पर रहते थें ,
राज्य के तत्कालीन राज्यपाल ने उन्हें बोर्ड परीक्षाओ में एक नया मानदंड स्थापति करने और एनटीएसई स्कालर होने के नाते एक सार्वजानिक समारोह में सम्मानित किया था
उच्च शिक्षा —
उनके पिता जिनका खुद का एक पुस्तकालय घर था जिसमे उपनिषद जैसे अध्यात्मिक ग्रंथो सहित दुनिया के कुछ बेहतरीन साहित्य शामिल थे लम्बे समय तक वे किसी शांत कोने में बैठ जाते और उन किताबो में डूबे रहते पंद्रह वर्ष की आयु में कई वर्षो तक लखनऊ शहर में रहने के बाद उन्होंने उपने पिता की ट्रांफर नौकरी के कारण उन्होंने स्वयं को दिल्ली के पास गाजियाबाद में पाया,
भारतीय प्रद्योगिकी संस्थान दिल्ली में प्रवेश प्राप्त किया आईआईटी ने उनका समय दुनिया को समझने और छात्र राजनीती में गहरा भागीदारी के बीच बीता, वे लम्बे समय से यह महसूस कर थे की जिस नजर से वे अधिकांश लोग दुनिया को देखते है मूल रूप से से कहे तो हमारे जीने का ढंग जैसा होना चाहिए था वैसा नही था,
वे मनुष्य की अज्ञानता जनित हीनता, गरीबी की समस्या , उपभोग की बुराई, मनुष्य जानवरों और पर्यावरण के प्रति हिंसा और स्वार्थ व संक्रिर्ण विचारधारा पर आधारित शोषण से बहुत व्यथित थे,
उनका पूरा अस्तित्व ही इस एक तरीके से पीड़ा में पहुच रहा था जिसको चुनौती देने के लिए वे भारतीय सिविल सेवा की रह चुनना एक सही कदम लगा, प्रशासनिक सेवाओ के आवंटन में उन्हें आई ए एस का इच्छित पद न मिल सका वो समझ गए थे की इस प्रकार से बदलाव नही लाया जा सकता जिस कारण उन्होंने इस पद को त्याग दिया, आज के समय में इसी पद के लिए लाखो युवा अपनी जान तक के दे रहे है फिर भी सेलेक्ट नही हो पाते,
आई आई एम् में प्रवेश कर उन्होंने दो वर्ष शैक्षणिक में विशेष ध्यान दिया इसके आलावा वे गाँधी आश्रम के पास की एक गैर सरकारी संगठन में बच्चो को पढ़ाते थें,
आचार्य प्रशांत जी का विश्व देंन
आचार्य प्रशांत जी आज विश्व में अध्यात्मिक सामाजिक जागरण की सशक्त है ये चीज उनके आखो में भी दिखती हैं भारत में चल रहे अंध विश्वासों वा मानव में जागरूकत को फैलाने तथा स्त्री और पुरषों में आन्तरिक दुर्बलताओ के विरुद्ध एक शक्ति और ताकत, को बताने का कार्य कर रहे हैं,
पशुओ से प्रेम रखने वाले शुद्ध शाकाहार का प्रचार करने वाले पर्यावरण के प्रति संरक्षण, युवाओ के पथप्रदर्शक मित्र किसी भी तरह से उन्हें पुकारा जा सकता हैं
मिडियाअच्, सरकार, सरकारी संस्थाए – शिक्षा मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय वित्त मंत्रालय आदि जो काम न कर रही है न करना चाहती है उस कम को अंजाम और लोगो तक सही सूचना पहुचाने के कार्य में लगे है आचार्य जी,
उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन त्याग दिया है इस कार्यो में क्योकि वो जानते हैं की जिस प्रकार से ये बड़े बड़े उद्योगपति पर्यावरण और आम जनता को घातक हानि पहुचाते जा रहे हैं, वो आगे चलकर के विनाश का रूप धारण कर लेगा ,
इन सब के खिलाप आचार्य जी श्री मद भगवत गीता उपनिषद वेदांत संत सरिता बौद्ध ग्रन्थ आदि उच्चतम दर्शन के माध्यम से लोगो के अन्दर से अन्धविश्वास दर भय आदिस इ निकालकर सचेत वा सही कर्म करने की दिशा [प्रदान कर रहे हैं
आचार्य जी के शब्दों में — मैं अगर भारत को बदलना चाहता हूँ तो मै यह कहूँ क्या की मै जब प्रधानमंत्री बन जाऊंगा तभी देश को बदलूँगा या मै जहाँ हूँ जैसा हूँ अपने स्तर से ही कोई प्रयास करना शुरू करूँगा ,,
विध्यारिथियो के लिए उनका सन्देश
दुनिया के किसी भी क्षेत्र के जो सर्वोच्च लोग हुए है वो सब ऐसे ही तलाशते तलाशते ठोकर खाते हुए कदम दर कदम बढे हैं सब ने मेहनत करी है मेहनत का कोई विकल्प नही होता
हर विद्यार्थियों के अकेलेपन का अभ्यास करना जरुरी है ये जो भीड़ के प्रवाह में हम अपनी निजता खो देते हैं वो बहुत खतरनाक बात होती हैं
उपस्क छात्रों के लिए — जो लक्ष्य नौ सौ निन्यानवे लोगो का है व्ही तुम्हारा कैसा बन गया इस पर कोई बात नही करना चाहता कही ऐसा तो नही की वो लक्ष्य तुम्हारा भी इसलिए बन गया क्योकि नौ सौ निन्यानवे लोगो का हैं और अगर विद्यार्थी हो तो एक चीज होनी चाहिए वो है विद्या क्योकि एक ये जो एकत्व है ये सब कुछ होता हैं,