हम जिस पृथ्वी या ग्रह पर रहते है वो सदैव गतिमान है वह अपने अक्ष पर निरंतर गोलाई में लट्टू के समान घुमती है इसके साथ ही हमारी पृथ्बी सौरमंडल का भाग होने के नाते दीर्घ वृत्ताकार कक्षा में सूर्य के चारो तरफ परिक्रमा करती है.
आर्थात हमारी पृथ्बी अपने अक्ष पर घुमने के साथ ही सूर्य का परिक्रमा करती है .
अक्ष क्या है ?
परिक्रमा क्या है ?
इस प्रकार पृथ्वी की दो गतिया हैं –
- घूर्णन गति अथवा दैनिक गति
- परिक्रमण गति अथवा वार्षिक गति
घूर्णन गति अथवा दैनिक गति
पृथ्बी आने अक्ष पर एक परिभ्रमण करने के लिए २४ घंटे का समय लेता है मतलब हम जिस ग्रह पर जीवन जी रहे है वह २४ घंटे में पूरी तरह घूम जाती है जैसे लट्टू घूमता है .पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व दिशा में घुमती है .
घूर्णन का प्रभाव
घूर्णन के प्रभाव से दिन व रात होती है,
समय का निर्धारण किया जाता है,
समुद्री पानी की दिशा बदल जाता है,
दिन और रात कैसे होते है ?
अपने अक्ष पर घूमने के दौरान पृथ्वी का एक भाग सूर्य के सामने से गुजरता है तथा वह भाग उजाले या सूर्य के किरणों के सामने आ जाता है, जिसके कारन उस स्थान पर दिन होता है इसके विपरीत उजाले वाले स्थान के पीछे वाला भाग पर सूर्य की रोशनी नही जा सकती इसलिए उस स्थान पर रात होती है, यही प्रक्रिया लगातार चलती रहती है- पृथ्वी के घुमने के बाद दिन वाले साथं पर रात हो जाती है और रात वाला जब सूर्य के किरण के पास आता है तो वह दिन होता है, पुनः फिर से वही प्रक्रिया लगातार चलता रहता है
उदहारण खुद से करके देखे
ग्लोब पर भारत का स्थान खोजे और उसके सम्मुख एक टार्च जलाए आप पाएंगे की उस स्थान पर उजाला होगा ये दिन होगा और उसके विपरीत पीछे वाले भाग पर रात होगा इसके बाद ग्लोब की घुमाने का प्रयास करे इस प्रैक्टिकल के बाद बेहतर समझ पाएंगे की दिन और रात कैसे होता है
परिक्रमा और वार्षिक गति
हमारी पृथ्वी सूर्य के चारो एक अंडाकार पथ पर ३६५ दिन तथा ६ घंटे में एक चक्कर पूरा करती है क्या हम कल्पना कर सकते है की सूर्य कितना विशाल होगा जिसका एक परिक्रमा करने में इतने दिनों का समय लगता है, पृथ्वी की इस परिक्रमण गति को ही वार्षिक गति कहते हैं, पृथ्वी की कक्षा में अंडाकार होने के कारण यह (पृथ्वी ) कभी सूर्य से निकटम दुरी पर होती है तो कभी अधिकतम दुरी पर होता है
अंडाकार कक्षा क्या है ?
दोस्तों जब हमारा ग्रह सूर्य के चारो और परिक्रमा या घुमती है तो वह गोल गोल नही बल्कि अंडाकार के रूप में घुमती है इसी को हम कक्षा कहते है,
गोलाई में घुमने से से दुरी लगभग बराबर होती है लेकिन अंडाकार के रूप में घुमने से गोलाई बराबर नही होती बल्कि कभी दुरी कम तो कभी दुरी ज्यादा होती हैं ऐसा पृथ्वी और सूर्य के मध्य गुरुत्वाकर्षण बल लगने के कारण होता है ।
उदहारण से समझो आप कोई बाल्टी या अन्य वस्तु लस्सी में बाधं कर घुमा रहे है यदि लस्सी थोड़ी से ढीली हो जाए तो वो वस्तु कभी दूर जायेगा तो कभी पास आएगा ठीक इसी प्रकार पृथ्वी के साथ है
उपसौर
जब पृथ्वी सूर्य के निकटम दुरी पर होती है तो यह स्थिति उपसौर कहलाती है एवं यह स्थति हमें प्रत्येक वर्ष ३ जनवरी को देखने को मिलती है, इस समय पृथ्बी सूर्य के निकटम दुरी पर होती है ( १४.७० करोड़ किमोमीटर पर पृथ्वी होती है )
कल्पना करिए जब पृथ्वी इस दौरान सूर्य के सबसे निकट होती है तो इसका मतलब यह हुआ की पृथ्वी पर सूर्य की रोशनी ज्यादा पड़ेगी, तथा गर्मी गर्मी ज्यादा होनी चाहिए लेकिन क्या वास्तव में हमें जनवरी के समय में गर्मी लगती है
अपसौर
जब पृथ्वी से अधिकतम दुरी होती है तो यह स्थिति उपसौर कहलाती है ऐसा स्थिति प्रत्येक ४ जुलाई को बनती है इस दौरान पृथ्वी सूर्य से अधिकतम दुरी आर्थात १५.२ करोड़ किमी पर होती है ,
परिक्रमण के प्रभाव
- दिन वा रात की अवधि में अंतर
- पृथ्वी पर प्रकाश व ऊष्मा के विवरण में अंतर आना
- ऋतुओ में परिवर्तन होना
दिन रात का छोटा बड़ा होना
यदि पृथ्वी गोलाई में न होकर अपने अक्ष पर लम्बवत होती तो प्रत्येक स्थान पर दिन रात बराबर होता, लेकिन ऐसा नही है
पृथ्वी अक्ष अपने कक्षा तल के साथ 66/१/2 का कोण बनती है इसके फलस्वरूप वर्ष के विभिन्न अवधियो में दोपहर में सूर्य की ऊंचाई में अंतर पाया जाता है इसके कारण वर्ष की विभिन्न अवधियो में दिन एवं रात की लम्बाई में अंतर पाया जाता है
21 मार्च को सूर्य भूमध्य रेखा पर लम्बवत चमकने के बाद उत्तरी गोलार्ध में लम्बवत चमकना शुरू करता है। 21जून को सूर्य कर्क रेखा पर जब लम्बवत चमकता है तब उत्तरी ध्रुव पर सूर्य की किरणों का आपतन कोण सर्वाधिक होता है इसी समय उत्तरी गोलार्ध में लम्बा दिन होता है तथा रात छोटी होती है इसके विपरीत 21 जून को मकर रेखा पर अर्थात दक्षिणी गोलार्ध में दिन की अवधि छोटी तथा राते बढ़ी होती है
२३ सितम्बर के बाद सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में प्रवेश करता है, २२ दिसम्बर को सूर्य मकर रेखा पर लम्बवत चमकता है इसके फलस्वरूप दक्षिणी गोलार्ध में दिन बड़े एवं रात छोटी होती है एवं इसके विपरीत स्थिति उत्तरी गोलार्ध में होती है यहा दिन छोटे और रेट बड़े होती है,
23 सितम्बर से 21 मार्च तक सूर्य का प्रकाश दक्षिणी गोलार्ध में अधिक प्राप्त होता है एवं जैसे जैसे दक्षिणी ध्रुव की और बढ़ते है दिन की अवधि भी बढती जाती है, एवं दक्षिणी ध्रुव पर इसी कारण छः महीने दिन होता है 23 सितम्बर से 21 मार्च जी सूर्य विषुवत रेखा पर चमकता है इस समय विश्व के विभिन्न भागो में दिन व रात की अवधि समान होती है
इन्हें भी पढ़े
दोस्तों आशा है की आप को Class 6 Geography Chapter 3 पृथ्वी की गतियाँ इस वाले से महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुआ होगा